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भरम / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
कुछ तो रखता गुज़रे हुए मौसम का भरम
चाँदनी रात, पहाड़ों की हवा और शबनम,
वो तबस्सुम से खिली रात में महका आलम
सुलगी साँसों का, बेताब निगाहों का सितम,
मेरी रग-रग में तेरी याद है अब तक पैहम
तूने क्या सेच के मुझको भुलाया है सनम।