भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भरम / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ तो रखता गुज़रे हुए मौसम का भरम
चाँदनी रात, पहाड़ों की हवा और शबनम,
वो तबस्सुम से खिली रात में महका आलम
सुलगी साँसों का, बेताब निगाहों का सितम,
मेरी रग-रग में तेरी याद है अब तक पैहम
तूने क्या सेच के मुझको भुलाया है सनम।