भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भांढ़-भांढ़िन / धनन्जय मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐलोॅ छै फेरू एंगना में
सुन्दर एक्टा लाल
हेकरोॅ खुशी में उड़ै लागलै
चारो ओर गुलाल।

देखी केॅ सुन्दर मुखड़ा
होलै सभ्भे निहाल
ऐंगना में जब घुड़की-घुड़की
खेलै लागलै लाल।

नूनू केॅ किलकारी सूनी
हर्षित होलै प्राण
जेनोॅ चढ़लै सोन चिरैया
फुदकी तुरत मचान।

भाँढ़-भाँढ़िन नाच करै छै
गावी मंगल गीत
कत्तेॅ दिनॉे केॅ बादे बाजै
ऐंगना में संगीत

भाँढ़-भाँढ़िन केॅ गीत सुनि केॅ
ऐलै टोला भर केॅ लोग
सभ्भे मिली केॅ नाच करै छै
सुन्दर सुखद संयोग।