भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भारत संतान / गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
Kavita Kosh से
किसी को नहीं बनाया दास,
किसी का किया नहीं उपहास।
किसी का छीना नहीं निवास,
किसी को दिया नहीं है त्रास।
किया है दुखित जननों का त्राण,
हाथ में लेकर कठन कृपाण॥
वही हम हैं भारत संतान—वही हम हैं भारत संतान॥
हमारे जन्मसिद्ध अधिकार,
अगर छीनेगा कोई यार।
रहेंगे कब तक मन को मार,
सहेंगे कब तक अत्याचार॥
कभी तो आवेगा यह ध्यान,
सकल मनुजों के स्वत्व समान॥
वही हम हैं भारत संतान—वही हम हैं भारत संतान॥