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भाषा / रणविजय सिंह सत्यकेतु

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एक भाषा प्रेम के, सबकेॅ मिलावै छै
ई सबकेॅ बुझावै छै ।
एक भाषा सहयोग के, सबके काम आवै छै
ई सबकेॅ बुझावै छै ।
एक भाषा अहिंसा के, सबकेॅ सबसें जोड़ै छै
ई सबकेॅ बुझावै छै ।
एक भाषा नकार के, सबके दुनियाँ उजाड़ै छै
ई केकरौ नै बुझावै छै ।