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भुला कर अदावत क़दम-दर-क़दम / अमर पंकज

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भुला कर अदावत क़दम-दर-क़दम,
किये जा मुहब्बत क़दम-दर-क़दम।

सँभलकर नहीं मैं रहा हूँ मगर,
सँभाली अमानत क़दम-दर-क़दम।

हुई दोस्ती फिर रक़ीबों से है,
सुनाता हिकायत क़दम-दर-क़दम।

इशारा समझ मौसमे-गुल का भी,
करे दिल बग़ावत क़दम-दर-क़दम।

रिफ़ाक़त ‘अमर’ अजनबी से भी कर,
भले हो ख़यानत क़दम-दर-क़दम।