अकाल है
नहीं है आस जीवन की
पलायन कर गया है
समूचा गांव ।
मोर
आज भी बैठा है
ठूंठ खेजड़े पर
छिपकली भी रेंगती है
दीवारों पर
और
वैसे ही उड़-उड़ आती है
चिड़िया कुएं की पाळ पर ।
भूख यहां भी है
है मगर देखने की
एक आदम चेहरा ।
अकाल है
नहीं है आस जीवन की
पलायन कर गया है
समूचा गांव ।
मोर
आज भी बैठा है
ठूंठ खेजड़े पर
छिपकली भी रेंगती है
दीवारों पर
और
वैसे ही उड़-उड़ आती है
चिड़िया कुएं की पाळ पर ।
भूख यहां भी है
है मगर देखने की
एक आदम चेहरा ।