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भूल / आभा पूर्वे
Kavita Kosh से
श्वेत कमल की पंखुड़ियों पर
तुमने महावर रचे
अपनी अंगुलियों से
एक रेखा खींच दी थी
और पूरा कमल जवाकुसुम-सा
रक्तिम हो गया था
मैंने व्यर्थ ही
रंगों को धोना चाहा था
ऐसा करके तो
सरोवर के ही सारे जल को
मैं लाल कर गई।