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भोर / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
सूरज उगलै, सूरज उगलै
सबसें पैहलेॅ चिड़ियाँ जगलै
औसरा-ऐंगन मेॅ चहकै छै
फूल भोरकी के मँहकै छै
चूँ-चूँ-चीं-चीं करै छै कत्तेॅ
इस्कूली में बच्चा जत्तेॅ
ठंडा-ठंडा हवा बहै
नींद बेचारी आँख मलै
रात अन्हरिया भागलै कब्भै
बूढ़ोॅ-बुतरु जागलै सब्भै
भीती पर मैना फुदकै छै
देहरी पर उछली आवै छै
बच्चा केॅ कोय्यो नै मारै
सुग्गा भोरे-भोर उचारै ।