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मंगलाचरण - 3 / प्रेमघन

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आनन चन्द अमन्द लखे, चकि होत चकोरन से ललचो हैं।
त्यों निरखे नवकंज कली कुच, मत्त मलिन्दन लों मन मोहैं॥
सो छबि छेम करै बृज स्वामिनि, दामिनि सी दुति जा तन जोहैं।
चातक लौं घन प्रेम भरे, घनस्याम लहे घनस्याम से सोहैं॥