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मंजिल थोड़के दूर / जयराम दरवेशपुरी

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बढ़ऽ किसान मजदूर
कि चलऽ चलऽ
मंजिल थोड़के दूर
मौज में अगला डंग बढ़ावऽ
दुर्बल हा सब जोर लगावऽ
असली हो औजारे हिम्मत
हिम्मत जग मशहूर

तोहीं चक्का
देश के रथ के
रख दा दुश्मन
के तू मथ के
ऊ सब मुट्ठी भर हो भइया
करि दा चकनाचूर

मिठ मोहना के मंतर परखऽ
दुश्मन पर बादर सन बरखऽ
सरसऽ कंठ-कंठ के भइया
योद्धा के दस्तूर अइसन हउ उत्साह
कि दुश्मन दहल गेलउ
धुक-धुक करइ करेजा
बाहर निकल गेलउ
तोरे सउँसे धरती भइया
तोहीं गम से चूर।