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मत आओ आकाश, आज तुम / रामकुमार वर्मा
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मत आओ आकाश, आज तुम
इन्द्रधनुष का मुकुट पहन।
मैं एकाकी हूँ, यह जग है
प्रान्तर-सा छविहीन गहन॥
तुम भी तो हो शून्य, आज
केवल दो क्षण का है श्रृंगार।
इससे तो सुन्दरतर होगा
मेरी आशा का आकार॥
मैं जाता हूँ बहुत दूर
रह गईं दिशाएँ इसी पार।
साँसों के पथ पर बार बार
कोई कर उठता है पुकार॥