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महानदी के तट से / विश्वासी एक्का
Kavita Kosh से
नीलाभ मन्द-मन्थर
दुख के भार से बोझिल
फिर भी बहने का धर्म निभा रही है ।
बन्धन से छूटने की छटपटाहट
ढकेल रही है किनारों की ओर ।
घाटविहीन गाँव
प्यासा है वर्षों से ।
किसके दुख से सन्तप्त
सूखती जा रही है
होती जा रही है तनवँगी ।
बढ़ता रेतीला विस्तार
तटों को काटता जल का बहाव ।
क्या लील जाएगा गाँव के गाँव ?
कहाँ जाएँगे मछुवारे
छोड़कर तटवर्ती झोपड़ी
छोटी-छोटी डोंगियाँ
वर्षों की सुखद स्मृतियाँ ।
क्या मछुवारे की बेटी को भूलना होगा
लहरों का संगीत
गुनगुनाने की कला ?