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माचिस / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
सुविधाओं की नमी से
सीलन लग गयी है
तुम्हारे विद्रोह की माचिस में
बारूदी तीलियां
नहीं कर पाती अब पैदा
चिंगारियाँ