भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माना बेरंग ज़िन्दगानी है / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
माना बेरंग ज़िन्दगानी है
उम्र हर हाल में बितानी है॥
इश्क़ में और कुछ नहीं दरकार
ज़ख्म पाना हैं चोट खानी है॥
हुस्न पर इस क़दर ग़ुरूर है क्यूँ
याद रख्खो यह जिस्म फ़ानी है॥
भीगा मौसम है अब तो आ जाओ
देखो फसलों का रंग धानी है॥
उनके कूचे से होके आई :सिया:
यह हवा इस लिए सुहानी है॥