भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मितवा कौन तुझे समझाए ! / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
मितवा कौन तुझे समझाए!
सोवत हो तो हाँक लगाऊँ जागत कौन जगाए रे मितवा ।
कौन तुझे समझाए ।
तू है हठी अरज नहिं माने
निरमोही मोरी पीर न जाने
मन केवल तोको पहचाने
बिसरत नहिं बिसराए रे मितवा !
कौन तुझे समझाए ।
मोहिनि सूरत माहिं बसत है
तोरे दरस बिन कल न परत है
नाग बिरह का मोहे डसत है
भागत नाहिं भगाए रे मितवा
कौन तुझे समझाए ।
सोवत हो तो हाँक लगाऊँ जागत कौन जगाए रे मितवा ।
कौन तुझे समझाए ।।