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मिलना जुलना आना जाना / उत्कर्ष अग्निहोत्री

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मिलना जुलना आना जाना,
दुनिया एक मुसाफिरखाना।

मुझको मिलना ही था उससे,
ढूँढ रहा था कोई बहाना।

सच्चाई को ग़ौर से देखो,
ख़्वाबों से क्या जी बहलाना।

भटके एक मुसाफिर से सब,
पूछ रहे हैं ठौर ठिकाना।

आज बहुत जी भारी भारी,
आया है कुछ याद पुराना।