भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मीत, तुम जगते रहना / बालस्वरूप राही
Kavita Kosh से
गाऊँ जब तक गीत मीत, तुम जगते रहना
तुम मूंदोगे पलक तमिस्रा तिर आयेगी
गीतों के चंदा पर बदली घिर जायेगी
गीत गा रहा मैं कि तुम्हारी मेरे उर में-
गाती पागल प्रीत मीत, तुम सच-सच कहना
गाऊँ जब तक गीत मीत, तुम जगते रहना।
पतवारें तो साथ न प्रिय, मैं ले पाया था
क्योंकि बुलाया तुमने इसीलिए आया था
अब तुम कहतीं बढ़ो, बढ़ा जा रहा निरन्तर
मिले हार या जीत मीत, तुम संग-संग बहना
गाऊँ जब तक गीत मीत, तुम जगते रहना।
एक तुम्हारा रूप नयन में डॉ रहा है
अधरों पर जीवन का अमृत घोल रहा है
सौ-सौ दोष लगाये जगती, या हो जाये-
निठुर नियति विपरीत मीत, मेरा कर गहना
गाऊँ जब तक गीत मीत, तुम जगते रहना।