भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुगती / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐक हो जादूगर,
दिखांवतो तरियां-तरियां रा सुपना
अर चलावंतौ दुनिया पर हुक्म ....!
घणी पछै ठा पड़यौ कै
बीं री सारी त्याग्त भासा है।

अब सुवाल ओ है
भासा नै कुण छुड़ावै
बीं जादूगर री कैद स्यूं ?