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मुझको अच्छा सिला दिया तूने / सिया सचदेव
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मुझको अच्छा सिला दिया तूने
बेवफ़ा दिल जला दिया तूने
क्या सुनाती मैं दास्तान-ए-ग़म
बीच में ही रुला दिया तूने
फिर अँधेरे निकल गए घर से
एक दीपक जला दिया तूने
अपने कांधों पे मुझको बैठा कर
ख़ुद से ऊँचा उठा दिया तूने
क्या अँधेरे अज़ीज़ हैं इतने
फिर से दीपक बुझा दिया तूने
जी रही थी ग़मों के साए में
और मुझे हौसला दिया तूने
सब के सब झुक गए निदामत से
ऐसा क्या कह दिया सिया तूने