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मुड़कर, अब अपने को देखो / रामगोपाल 'रुद्र'

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मुड़कर, अब अपने को देखो और मुझे!

कहाँ छोड़ आए थे अथ में!
चढ़ भागे सोने के रथ में!
सो मैं लेकर हार खड़ा हूँ
आज तुम्हारे स्वागत-पथ में!
अब अपने सपने को देखो और मुझे!

तब तो तुमने बिहँस दिया था
प्रथम-प्रथम जब दरस दिया था!
खनिज-मलिन मेरी माटी का
पावक ने जब परस किया था!
अब मेरे तपने को देखो और मुझे!