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मुनिया सोच रही है / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
मुनिया सोच रही है, यह तो
अरे, बड़ा है चक्कर,
चक्कर क्या, मुझको तो लगता
है कोई घनचक्कर।
पापा कहते, आओ-आओ,
तुम्हें दिखाऊँ मुनिया,
एक ग्लोब में नदियाँ, पर्वत
इसमें सारी दुनिया।
मगर जरा से एक गोले में
कैसे दुनिया सारी,
बात समझ न आई, मुनिया
सोच-सोचकर हारी।