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मेघ पर उड़ते आते मेघ सघन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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मेघेर परे मेघ जमेछे आँधार करे आसे ।
मेघ पर उड़ते आते मेघ सघन करते मिलकर अँधियार।
दिया बस मुझे यहाँ का ठौर, यहां एकाकी बैठा द्वार ।।
रोज़ कितने लोगों के बीच किया करता हूँ कितने काम ।
यहाँ बस आज तुम्हारी आस, छोड़कर बैठा सारे काम ।।
न यदि छवि अपनी दिखलाई अगर की मेरी अवहेला,
बताओ काटूँगा कैसे अरे, मैं ये बादल-बेला ।।
जहाँ तक पाता हूँ मैं देख, देखता रहता हूँ अपलक,
प्राण क्रंदन करते मेरे, मिले तो एक तुम्हारी झलक ।।
मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत 10 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)