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मेरा हाथ छोड़, दे घात छोड़ उत्पात छोड़ / दयाचंद मायना
Kavita Kosh से
क्या करैं गरीब का गुजारा ना रहा
जिसकी आड़ लई थी, सहारा ना रहा
चलो छोड़ कै बेटा, यो घर म्हारा ना रहा...टेक
दुख दिन पै दिन हो सै ज्यादा,
हाम ला सकते ना अन्दाजा
खाली करो शहर म्हं साझा म्हारा ना रहा
डूबते गरीब नै उभारा ना रहा...
गल्ती करी कुणसे गण नै,
मैं खोए हाण्डूं सूं मण नै
रैन बसेरा सिर ढकण नै ढारा ना रहा
गोती-नाती भाई बन्ध कोए प्यारा ना रहा...
दुख मनैं दुनियाँ म्हं तै बाह्ग्या,
हुई बरसात बाढ़-सा आग्या
सूख चुक्या मुरझाग्या केशर क्यारा ना रहा
मन मुर्गां खातिर चुग्गा पानी चारा ना रहा...
‘दयाचन्द’ गुरु मुंशी का ज्ञान छूटग्या,
फेर गावण का बहम फूटग्या
बजता-बजता तार टूटग्या इकतारा ना रहा
पाट्या टूट हुई कुणबे की लारा ना रहा...