भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी बेट्टी यू के हाल सासरै घाल्ली थी / धनपत सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरी बेट्टी यू के हाल सासरै घाल्ली थी
बनड़ी बणकै मेरे ढूंड तैं जा ली थी

जिसकी बेट्टी इसी दुखी वा क्यूकर जीवै मात
काठ के कोयले होया करैं पेड़ बिना फल पात
बिल्कुल ना रही गात बदन पै लाली थी

तनैं छोड़ कै गई घरां मनैं सब कुछ लाग्या फीक्का
तेरे बिना हे मेरी बेटी घर म्हं कुछ ना दीक्खया
एक बाळक नैं छींक्या था जब तेरी डोळी चाली थी

मां बिन बेट्टी इसी जगत म्हं, जिसा बाग बिना माळी
काठ के कोयले होया करै सै जो बिना पेड़ फल, डाळी
उस खेत म्हं आकै बणी रूखाळी, मनैं बनड़ी भेजी ब्याहली थी

कहै ‘धनपत सिंह’ सुण मेरी बेट्टी किस्मत आग्गै अड़गी
देई, धाम ना पूज्जण पाई पिया तैं बिछड़गी
विपता म्हं विपता पड़गी और भतेरी काल्ली थी