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मैं बागी हो गई हूँ / देवी नांगरानी
Kavita Kosh से
किसने मांगी थी तुमसे रिहाई
तुम्हारी चारदीवारी की बेड़ियों में
मैं खुश थी,
दुखी तब हुई जब
तुमने उन बेड़ियों को कसकर
गुलामी की जंजीरें
बनाने का यत्न किया।
मन से मानी हुई
गुलामी की आजादी अच्छी लगी
पर थोपी हुई परिधियों में
तुम्हारा इस तरह कसना बुरा लगा
इसीलिए मैं बागी हो गई हूँ