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मैं बेचैन हूँ यह देख कर / केशव तिवारी
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मैं बेचैन हूँ यह देख कर
कैसे मेरे भीतर बहती केन
हहराकर उमड़ पड़ी
कोसी को देखते ही ।
मैं इस संगम में डूबता रहा
गले-गले तक ।