मैं रोती हूँ / देवेन्द्र आर्य
मैं रोती हूँ कि चिड़िया प्यासी है
रोती हूँ कि मेरे आँसू पीकर चिड़िया
अपनी प्यास बुझा ले
रोती हूँ मैं कि मुफ़लिसी में जी रही नदी
हड्डियों का ढाँचा भर रह गई है
मेरे आँसू चिकना दें उसके गाल
रोती हूँ मैं
कि रेत से छीनी जा रही है नमी
जैसे आँखों से सपने
मुझे रोना आता है
देखी नहीं जाती बादलों की कंगाली
लग जाएँ मेरे आँसू उसे
मैं रोती हूँ कि सूखे हैं सूरज के होंठ
परेशान हैं व्रती बहनें
मिल जाए अंजलियों को एक लुटिया जल
अर्घ्य के लिए
रोती हूँ कि वज़ू करना दुश्वार होता जा रहा है
शायद काम आ जाएँ मेरे आँसू
जैसे पखारे थे कृष्ण के आँसुओं ने सुदामा के पाँव
मेरी डबडबाई आँखों में तैरती है एक डोंगी
शुभ सगुन की
भेजना चाहती हूँ आँसुओं संग पड़ोसनों को
कि उनकी आँखों में सलामत रहे करुणा
सलामत रहें बेटियाँ
मैं रोती हूँ कि आँसू गले लगा लें आँसुओं को
जोड़ लें बहिनापा
बचा रहे आँखों में पानी
मैं रोती हूँ
दुनिया के पहले आँसू को याद कर मैं रोती हूँ
मैं रोती हूँ कि रोना न पड़े कभी किसी और को
वाह रे मेरी क़िस्मत
मैं जनम भर रोती ही रही