भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोम न, पत्थर बनऽ / सतीश मिश्रा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कपूर के जे हे कदर तुतिया के गाँव में
पायल तूँ बाँध देख लऽ कुतिया के पाँव में

हाथ मत लफार दऽ खोता के फर समझ
डउँघी के पोर-पोर पर बिढ़नी हे दाँव में

सितार के सम्हार तूँ सले-सले सिधार जा
सुनत इहाँ के भैरवी, ई काँव-काँव में

मत कहऽ कि डूब गेल हे सुरुज, चलूँ
बंसी तोरे न बेध दे इ्र चल-चलाँव में

बनऽ परास, तार तूँ, चाहे बनऽ बबूल
चन्नन कहाँ कबूल ई जंगल के छाँव में

जिनगी जिएला मोम न, पत्थर बनऽ ‘सतीश’
दू पहर गुजर चुकल दरकल ढलाँव में।