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यकीं हो गया अब / कैलाश झा 'किंकर'
Kavita Kosh से
यकीं हो गया अब।
यहीं हैं कहीं रब॥
इन्हीं बाजुओं में
सफलताएँ हैं सब।
जुनूं जिन पर छाया
रुका करते हैं कब।
मिलेगा जो हक़ है
ज़रा खोलिए लब।
मैं आता हूँ निश्चित
बुलाता है वह जब।