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यमुना-तट-संनिकट कुंज में / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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यमुना-तट-संनिकट कुंजमें मृदुल शिलापर मोहन श्याम।
बैठे रूप-छटा बिखराते, बजा रहे वंशी अभिराम॥
सजी-सजायी चली जा रही गोपी ले करमें मटकी।
जल भरने, सुन मुरली-ध्वनि, वह रही राहमें ही अटकी॥
खिंची लोह-चुंबक-सी मुनि-मन-मोहन-मुख-माधुर्य निहार।
जा बैठी विमुग्ध, विस्मित-सी, भूल भवन-तन-मन-संसार॥
भरा अमित आमोद हृदयमें, उपजा मन मधुमय अभिलाष।
बैठी रहूँ सदा यों ही, बस, मुग्ध हुई मोहन के पास॥