भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यह परछाई कैसी / निदा नवाज़
Kavita Kosh से
यह परछाई कैसी
पेड़ तले यह सिसकी किसकी
कौन यह कन्या
किस की प्रतीक्षा
सीता बन कर कल भी रोई
रोना इस के जन्म जन्म में
कैसी शक्ति शिव-शंकर की
कैसी भक्ति राम रमय की
आओ फिर से इसको
शक्ति बनाकर
दिल से लगाकर
दाग़ मिटाएं मानवता से।