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यह मन इस लोक में / शमशेर बहादुर सिंह
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यह मन इस लोक में कहाँ थमता था !
कल तक कवि आसमान में रमता था ।
ऎसा युग पलटा आज मैं पूछता हूँ--
क्या स्वर्ग ही लिए धूल की समता था ?
(रचनाकाल : 1945)