भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह मेरी गुमनाम ज़िन्दगी / बलबीर सिंह 'रंग'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह मेरी गुमनाम ज़िन्दगी,
बिना बात बदनाम ज़िन्दगी।

सुबह ज़िन्दगी, शाम ज़िन्दगी,
गोया आठों याम ज़िन्दगी।

इंसानियत, इबादत, उल्फ़त,
इन का सदर मुक़ाम ज़िन्दगी।

कभी किसी के काम न आयी,
कितनी नमकहराम ज़िन्दगी।

‘रंग’ जिसे कहती है दुनिया,
सचमुच उसका नाम ज़िन्दगी।