भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यह रहा उसका घर-10 / गगन गिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह रही सीढ़ियाँ

तिलिस्मी


ऊपर आती हैं जो

नीचे संसार छोड़


इन्हीं से होता है शुरू

खेल सारा


यहीं पर मिलती है

कभी-कभी

जादूगरनी एक


जितना वह हँसती है

उतना वह रुलाती है

इस घर के देवताओं को