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ये चारों तरफ आज फैली ख़बर है / शुचि 'भवि'

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ये चारों तरफ आज फैली ख़बर है
मेरी शायरी पे तुम्हारा असर है

जवानी रही होगी बेशक मुअज्ज़म
बुढ़ापा हो शादाब इसका हुनर है

तुम्हारी इबादत ही है शाम मेरी
तुम्हारे बिना कुछ न मेरी सहर है

जिसे तुमने केवल हमारा बताया
वही घर तो सारे ज़माने का घर है

शबे-वस्ल की याद आती है किसको
कहाँ 'भवि' अब एहसास में वो असर है