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ये ना देखो की है बयान में क्या / सिया सचदेव

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ये ना देखो की है बयान में क्या
उसने लिक्खा है मेरी शान में क्या

सच कहा जाये सच सुना जाये
ऐसा होता है इस जहान में क्या

रंग क्यूँ उड़ गया है चेहरे का
ये सबा कह गयी है कान में क्या

जंग की खूँ नहीं हैं ग़र तुमको
तीर ख़ुद आ गया कमान में क्या

तुम तो मंज़र कशी में माहिर हो
अब दही जम गया ज़बान में क्या

तेरे बारे में कुछ न लिक्खूँ तो
और लिखूँ मैं दास्तान में क्या

आग पानी हवा जरा मिट्टी
और है जिस्म के मकान में क्या