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रड़कै प्रीत / हनुमान प्रसाद बिरकाळी
Kavita Kosh से
घर री
मान मरजादा
बाप री आण
पाघ री कांण
रोप दियो पग
आंख्यां में पण
सुपनां कुंआरा।
आंख्यां ढळकै
गरळ-गरळ आंसूड़ा
दिखण में दिखै
घर रो मोह
रड़कै पण प्रीत।