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रश्मि जालों को बिछा... / कालिदास
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- प्रिये ! आई शरद लो वर!
रश्मि जालों को बिछा
- आल्हाद भरता जो हृदय हर
नयन उत्सव, हिम फुही झर
- इंदु भी है अब कठिनतर
पति-विरह विष-सिक्त शर-क्षत
- नारियों का ताप दुखकर
- प्रिये ! आई शरद लो वर!