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रहगुज़र / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
अब आप की मर्ज़ी है कि मिलें या न मिलें
हम थक चुके हैं शायद न मिलेंगे इसके बाद
कहिए कि न कहिए, सुनिए कि न सुनिए,
लिखा है हमने नाम तेरी रहगुज़र पे आज
बेचैन हवाओं ने ये मुझे आ के कहा है
वो हमसे मिलेंगे मगर ज़िंदगी के बाद।