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राग-विराग - 4 / विमलेश शर्मा
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मुझे याद है तुम्हारी कही
और हाँ!
ठीक ही तो कहा था तुमने
कि प्रेम-अप्रेम
राग-विराग
मानस असंतुलन की अवस्थाएँ भर हैं
बस्स!
मन उसी की अनुगूँज दूर तक
सुनता रहा
गुनता रहा
जाने क्या-क्या बुनता रहा!