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राग-विराग : चार / इंदुशेखर तत्पुरुष
Kavita Kosh से
बड़े झूठे हैं आप
सब नाटक है आपका प्यार-व्यार
उपालंभ के साथ कहा उसने
बड़े कवि बने फिरते हो
कभी लिखी है मुझ पर
एक ज़रा सी कविता?
एक स्नेहसिक्त चुम्बन का
अभिषेक करते हुए, कहा मैंने; लो,
यह लो मेरे प्राणों की सर्वश्रेष्ठ कविता
अंकित करता हूं
तुम्हारे दीप्तिमान ललाट पर।
बरसों बाद अब यह प्रसंग
याद आता है बार-बार
जब भी लिखने बैठता हूं
कागज पर उभर आता है तुम्हारा चेहरा
और इस तरह अब मेरी हर कविता
तुम पर ही लिखी होती है
जबकि तुम यहां नहीं कहीं।