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राग-विराग : सात / इंदुशेखर तत्पुरुष

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इस तरह पसर जाएगा सन्नाटा
हमारे बीच एक दिन
घुप्प अंधेरे में जैसे नहीं सूझते
छूटे हुए दो हाथ।

हममें से किसी ने नहीं सोचा था
पहले से ऐसा।
सोचा भी होता अगर
उड़ा दिया होता हंसी में फुर्र से
और कर भी क्या सकते थे हम!
जैसे कि अटल है मृत्यु
यह जानते-बूझते भी
भागकर कौन कहां जा पाता है
मृत्यु से पहले-मृत्यु के पार।