भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राग चले साथ राग के / केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अलग-अलग वृक्ष खड़े
अश्रु-हास और रुदन-गीत गिन रहे

एक लहर फूल से उठी
एक लहर कूल से उठी

लहर चली साथ लहर के
त्वरित और ठहर-ठहर के

अलग-अलग वृक्ष खड़े
ग्रीष्म, शरद के काल गिन रहे

एक आग खेत से उठी
एक आग रेत से उठी

आग जले साथ आग के
राग चले साथ राग के

अलग-अलग वृक्ष खड़े
ह्रास-वृद्धि और बैर-प्रीत गिन रहे

एक ज्वार आर से उठी
एक ज्वार पार से उठी

ज्वार चले साथ ज्वार के
तार बजे साथ तार के

अलग-अलग वृक्ष खड़े
जन्म-मरण और हार-जीत गिर रहे।