भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात की बात / विश्वरंजन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज




बहुत अंदर छुपा पड़ा हादसों का आंतक
एक जादू-सा जग पड़ता है सहसा
और रात की परछाईयों के साथ करता है नृत्य
एक सूखी बच्ची फिर से रोती है
एक नंगी और और सिकुड़ जाती है पुलिस के नीचे
मंगरू का बूढ़ा बाप चीखता है और
खाँसता है एक तपेदिक खाँसी