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रात के साथ ही जब दर्द जवां होता है / रिंकी सिंह 'साहिबा'

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रात के साथ ही जब दर्द जवां होता है।
मेरे ज़ख़्मों से नया शम्स अयाँ होता है।

रक़्स करता है सर ए शाम मेरी आँखों में,
एक चेहरा जो मेरे दिल में निहाँ होता है।

लब के इंकार को इंकार न समझा जाए,
राज़ उल्फ़त का निगाहों से बयाँ होता है।

करवटें खींचती हैं सिलवटों में तस्वीरें,
साथ इक इश्क़ के क्या ख़ूब समां होता है।

ख़ून उगलती है मेरी रूह ए वफ़ा की धड़कन,
मेरी नस -नस में तेरा इश्क रवाँ होता है।

वक़्त के साथ जो हर गाम बदल जाते हैं,
उनका दुनिया में कहाँ नाम ओ निशां होता है।

हमनवा ,हमनशीं, हमराह भी जो हो " रिंकी"
एक ही शख़्स में ये जादू कहाँ होता है।