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रात में / क्लो दुरी बेज़्ज़ोला
Kavita Kosh से
रात में
चाँद
ज्वार-भाटॊं के बीच
बूमरैंग फेंकता है
मेरे विचार
उथले पानी में
मछलियों की तरह छटपटाते हैं
अपने चँदेरी बाजू दिखलाते हुए
मेरा मुँह
शब्दों के बुलबुले
उठाता है
जब रेत
समन्दर को छानती है
अबाबीलें स्वर्ग से गिरती हैं
और मेरे खतों को
उठा ले जाती हैं
कुछ नहीं बचता
सिर्फ़ उनकी उड़ान
अनुवाद : विष्णु खरे