भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राधा की सुधि करत कन्हाई / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
राधा की सुधि करत कन्हाई।
कहत रूप-गुन-सील प्रिया के, धीरज चली पराई॥
प्रगटी प्रिया-मूर्ति नभ स्मृति अनुरूप मंजु छबि छाई।
मृदु मुसुकान, तदपि मुख-पंकज रह्यौ मनौं कुिहलाई॥
थिर सब अंग, नैन नीचे थिर, सहज समाधि लगाई।
प्रिय-उर-भाव प्रगट भए सगरे, मूर्तिवंत ह्वै आई॥
लखि लच्छन बिरुद्ध-धर्माश्रय, मगन भए जदुराई।
हर्ष-बिषाद भरी मुख-छबि वह हरि-हिय माँझ समाई॥
ढरे अश्रु-मुक्ता ऊधौ-दृग, स्नेह-सुधा सरसाई।
अकथ कहानी दिय प्रेम की, कैसेहुँ कही न जाई॥