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राम-नाम-महिमा / तुलसीदास/ पृष्ठ 2


राम-नाम-महिमा-1
 
(91)

जीव जहान में जायो जहाँ , सो तहाँ ,‘तुलसी’ तिहुँ दाह दहो है।
दोसु न काहू, कियो अपनो, सपनेहुँ नहीं सुखलेसु लहो है।।

रामके नामतें होउ सो होउ, न सोउ हिएँ रसना हीं कहो है।
 कियो न कछू , करिबो न कछू , कहिबो न कछू , मरिबाइ रहो है।।

 (92)

जीजैं न ठाउँ, न आपन गाउँ , सुरालयहू को न संबलु मेरे।
नामु रटो, जसबास क्यों जाउँ को आइ सकै जमकिंकरू नेरें।।

तुम्हरो सब भाँति तुम्हारिअ सौं, तुम्ह बलि हौ मोको ठाहरू हेरें।
बैरख बाँह बसाइए पै तुलसी -घरू ब्याध-अजामिल -खेरें।।