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राम की कृपालुता / तुलसीदास / पृष्ठ 8
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राम की कृपालुता-7
( छंद संख्या 15,16)
(15)
रूप-सीलसिंधु, गुनसिंधु, बंधु दीनको,
दयानिधान, जानमनि, बीरबाहु-बोलको।
स्त्राद्ध कियो गीधको, सराहे फल सबरीके,
सिला-साप-समन, निबाह्यो नेहु कोलको।।
तुलसी-उराउ होत रामको सुभाउ सुनि,
को न बलि जाइ, न बिकाइ बिनु मोल को।
ऐसेहु सुसाहेबसों जाको अनुरागु न,
सो बड़ोई अभागो, भागु भागो लोभ-लोलको।15।
(16)
सूरसिरताज, महारजनि के महाराज,
जाको नामु लेतहीं सुखेतु होत ऊसरो।
साहेबु कहाँ जहान जानकीसु सो सुजानु,
सुमिरें कृपालुके मरालु होत खूसरो।
केवट,पषान, जातुधान, कपि-भालु तारे,
अपनायो तुलसी-सो धींग धमधूसरो।
बोलको अटल, बाँहको पगारू, दीनबंधु,
दूबरेको दानी, को दयानिधान दूसरो।16।