भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रामगुणगान / तुलसीदास/ पृष्ठ 2

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


रामगुणगान-2
 
( छंद 113 से 114 तक)

(113)

जय जयंत-जयकर, अनंत सज्जनजनरंजन!
जय बिराध-बध-बिदुध -मुनिगन-भय -भंजन!

जय निसिचरी-बिरूप-करन रघुबंसबिभूषन!
सुभट चतुर्दस-सहस दलन त्रिसिरा-खर-दूषन।।

जय दंडकबन-पावक-करन, तुलसिदास-संसय-समन!
जगबिदित, जगतमनि, जयति जय जय जय जय जानकिरमन!

(114)

जय मायामृगमथन, गीध-सबरी-उद्धारन!
जय कबंधसुदन बिसाल तरू ताल बिदारन!

दवन बालि बलसालि, थपन सुग्रीव, संतहित!
कपि कराल भट भालु कटक पालन, कृपालचित!

जय सिय-बियो ग-दुख हेतु कृत -सेतुबंध बारिधिदमन!
छससीस बिभीषन अभयप्रद, जय जय जय जानकिरमन!